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कवि नरेन्द्र दाधीच की स्मृति में कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन

कवियों ने एक से बढ़कर एक कविताओं की दी प्रस्तुति, हास्य और वीर रस में डूबे रहे श्रोता

भीलवाड़ा। (पंकज पोरवाल) दिवंगत कवि नरेन्द्र दाधीच की स्मृति में शनिवार रात कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। सांगानेर रोड स्थित मोती बावजी मंदिर परिसर में आयोजित कवि सम्मेलन में देश के जाने-माने कवियों ने काव्य पाठ कर श्रोताओं को रोमांचित कर किया। पूरी रात पंडाल वाह वाह की आवाजों से गूंजता रहा। कार्यक्रम की शुरुआत लोकेश महाकाली ने सरस्वती वंदना से की। उदयपुर से आए सिद्धार्थ देवल ने, तुम पानी के निरे बुलबुले कुछ पल के मेहमान हो। तुम कुर्सी की नगर वधू हो वोटो के अरमान हो।

सैनिक की तो बात छोड़ दो काम करो बस तुम इतना, पहले यह जनमत करवाओ तुम किसकी संतान हो रचना सुनाकर श्रोताओं में जोश भर दिया। चित्तौड़गढ़ के कवि रमेश शर्मा ने, बारिशें ना मन छुएंगी, स्वप्न आना छोड़ देंगे। पतझरों से दुःख ना होगा, नैन दर्पण, तोड़ देंगे, जब तुम्हे आशा न होगी, तब मिलूँगा सुन कर वह वाही लूटी। मावली से आए मनोज गुर्जर ने पिता की सार्थकता बताते हुए कविता मान जनक का जो ना करता, सुत दाग़ी हो जाता हैं। सच कहता हूँ सुनो पाप का, वो भागी हो जाता हैं। क्यों जाए हम मन्दिर मन्दिर, तात प्रभु का रूप यहाँ, जिसके सर पर हाथ पिता का, बड़भागी हो जाता हैं सुना कर तालियां बटोरी। कवि संजीव सजल ने ज़ब दिवंगत कवि नरेंद्र दाधीच की रचना, इस देश के इतिहास के प्रष्ठों पर लिखा हूं, जिसने भी दिया प्रेम में बिन मोल बिका हूं, फिर व्यर्थ क्यों विवादित मेरा नाम हो गया, अपने ही घर में राम क्यों बदनाम हो गया सुनाई तो पूरा मंच तालियों से गूंज उठा। कवियत्री शालू सांखला ने कहीं जब दिल के कोने में चाय की मीठी प्याली में, रंगों में, पटाखों में पापा तुम ही दिखते हो। वह कीचड़ में फिसल जाना, फटे कपड़ों से घर आना, नाव कागज की बनवाना, रोज बिन मोल बिकते हो सुना कर सबको भाव विभोर कर दिया। नाथद्वारा से आये कवि लोकेश महाकाली ने,जो मैं जान ही जाती पहले तेरी माया का ये फेर। मेहँदी रचे हाथों से तुझको मिटाती पल न लगाती देर। बैरन रण से खींच लाई पिया जी का जिया रे। बैरन बिंदिया रे सुनाई। शाहपुरा से आए कवि दिनेश बंटी ने जब अपनी रचना, होली आई रे हाँ रे होली आई रे। आज बबिता सामे मिलगी, भर – भर रंग लगाओ जी। अय्यर देखे थे बण जाओ जेठा भाई रे, सुनाई तो हंसी के फव्वारे छूट पड़े। कोटा के कवि अर्जुन अल्हड़ ने संतो के सत मुनियों के मन, तपस्पियों के ताप तुल गए, पावन संगम के पावन जल में दुखियों के संताप धुल गए, प्रयागराज में लगा कुंभ तो दिल्ली के सब पाप धुल गए सुना वाहवाही लूटी। कवि हिम्मत सिंह उज्ज्वल ने जप तप चाहे लाखों कर लो, पण राखो यो ध्यान है। माइत थारां राजी है तो,राजी खुद भगवान है सुनाई। कवि ओम आदर्शी ने बिलख पड़यो माटी रो मटको, गरियाला री धुळ र गाँव माइलो बरगद कट ग्यो, बाड़ा रो बम्बूळ र रचना प्रस्तुत की। कार्यक्रम की शुरुआत में आयोजक संजीव सजल द्वारा सभी का स्वागत किया गया। अंत मे दीपक पारीक ने सभी का आभार ज्ञापित किया।

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Chief Editor of voice of public rajasthan

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