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सांगोद का सुप्रसिद्ध नहाण लोकोत्सव के 20दिन शेष

सांगोद न्हाण पर कई दूर दूर से किन्नर भी यहां पर आते है

बी एम राठौर
संवाददाता सांगोद

सांगोद में धुलडी के दूसरे दिन घूघरी की परंपरा व पूजा के साथ शुरू होने वाला न्हाण नगरवासियों के लिए लोकोत्सव व महापर्व से कम नहीं है और आज भी पूरे जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है।

बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को इस दिन का इंतजार रहता है। एक ऐसा लोकोत्सव जो जात पात, धर्म को भुलाकर पूरे नगर वासियों को एकजुट कर देता है। यह लोकोत्सव राजसी ठाठ से संपन्न होता है, जो 400 वर्ष पुरानी परंपरा को अभी भी अपने में समेटे हुए है। सांगोद न्हाण केबल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि जागरूकता के लिए भी प्रसिद्ध है। हालांकि समय के साथ न्हाण लोकोत्सव में भी पाश्चात्य संस्कृति का असर देखने को मिला है पर पांच दिवसीय लोकोत्सव राजस्थान की छवि, संस्कृति, पहनावे, विभिन्न क्षेत्रों की भाषा आदि की यादें ताजा कर देता है।

विभित्र प्रकार के स्वांग देते हैं जागरूकता का संदेशः लोगों में विभित्र

भविष्यवाणी
प्रकार के स्वांग जागरूकता का संदेश देते हैं। इसमें कलाकार डॉक्टर, शूरवीर सांगा, राजनेता, साधू, सेठ-सेठानी, पंडित चारण-चारणी जैसे वेश धारण करके लोगों को जागरूकता का संदेश देते हैं। इससे लोगों को मनोरंजन के साथ-साथ जानकारी भी मिलती है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि जिस वर्ष भी देश या राज्य में ताजा मुद्दा चल रहा होता है, उसका स्वांग जरूर लाया जाता है।

घोड़ों पर सवार नन्हे अमीर उमराव मोह लेते हैं मनः चार दिवसीय लोकोत्सव हाथी, घोड़ों, ऊंटों, रंग बिरंगी पोशाकों से सराबोर होता है। छोटे बालक शेरवानी, साफा, आभूषण, मोर पंखी पहनकर घोड़े पर बैठकर अमीर उमराव बनते हैं।


दर्जनों उमराव के पीछे बादशाह की सवारी होती है, जो मध्यकाल के राजसी ठाठ व राजाओं की याद ताजा कर देती है। इसके अलावा नन्हे बच्चे अश्वों पर महाराणा प्रताप, शिवाजी, भगतसिंह, सुभाषचंद्र बोस, झांसी की रानी जैसे रूप धारण करते हैं, जो अपने आप में एक अलग ही दृश्य होता है।

कोई प्रचार-प्रसार नहीं फिर भी लाखों लोग बनते हैं आयोजन का हिस्साः इस लोक उत्सव की सबसे बड़ी बात यह है कि इसके लिए कोई प्रचार की आवश्यकता नहीं होती, फिर भी लाखों की संख्या में ग्रामीण इकट्ठा होते हैं। इस लोकोत्सव की लोगों में इतनी उमंग होती है कि किसान व मजदूर उत्सव को देखते हुए काम छोड़कर व छुट्टो लेकर केवल न्हाण को देखने आते हैं। इस बात का अंदाजा केवल इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले वर्ष कोरोना महामारी के कारण लोकोत्सव नहीं होने से नगरवासी काफी मायूस हुए थे। रात को चलने वाले राजस्थानी लोकगीत, कविता आदि को सुनने के लिए रात में लोग सुबह तक यहीं जमे रहते हैं।

भोर के समय निकलने वाली मां भवानी की सवारी का होता है अलग ही रूप

भोर के समय दोनों पक्षों में भोर के अंधेरे में दर्जनों देव वाहन के साथ मां भवानी की सवारी निकाली जाती है। इसकी तैयारी के लिए लोगों में इतना जुनून होता है कि वह पूरी रात जागकर भगवान के विभिन्न रूप धारण करने वाले बच्चों का श्रृंगार करते हैं। उसके बाद भोर के समय जलती मशालों, ढोल, नगाड़ों और जयकारों के साथ मां भवानी की सवारी निकाली जाती है और लोग मां भवानी का दर्शन करके अपने आप को धन्य महसूस करते हैं। बादशाह की सवारी के बाद महफिल होती है।

सवारियों में करतबों की होती है भरमार

न्हाण में अनुभवी लोगों द्वारा जादू दिखाया जाता है। इसके अलावा बृज पर रस्सा बांधकर लगभग 40-50 फीट की ऊंचाई से व्यक्ति आग के गोले के बीच में से निकलता है। लगभग 30-40 फीट की ऊंचाई पर एक व्यक्ति केवल एक लकड़ी के पत्ते के सहारे गोल-गोल घूमता है। अंगारों पर चलना, नृत्य करना आदि इसमें शामिल होता है। इस दौरान लोग अपने दांतों तले उंगली दबा लेते हैं।

voiceof public

Chief Editor of voice of public rajasthan

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