सांगोद प्रशासन की किसानों से नोलाईयां नहीं जलाने की अपील
उल्लंघन करने वालों पर होगी सख्त कार्रवाई

बी एम राठौर सांगोद
सांगोद क्षेत्र में फसल कटाई के उपरान्त फसल अवशेषो को जलाना वर्तमान मे एक गंम्भीर चिंतनीय विषय है क्योकि फसल अवशषो को जलाने से भूमि की उर्वरता शक्ति, मृदा में उपस्थित सुक्ष्मजीवो की संख्या में अत्यधिक कमी आ रही है एवं साथ ही जलाने से विभिन्न हानिकारक गैसे वातावरण मे छोडी जाती है जिनसे कैंसर, अस्थमा एवं अन्य हानिकारक रोग होते है। अतः फसल अवशेषों को जलाने के बजाय भुसा बनाय जो पशुओं के चारे में काम आये, मृदा में मिला देने से मृदा में खाद का काम करे साथ ही साथ मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा मे सुधार होगा तथा साथ ही फसल उत्पादन व जैव विविधता भी बढेगी व मृदा का स्वास्थ्य लम्बे समय तक अच्छा बना रहेगा ।
फसल अवशेष दहन के दुष्परिणाम :-
1. कार्बनिक पदार्थ/ जीवांश पदार्थ मृदा संसाधन का एक महत्वपूर्ण घटक है परन्तु फसल अवशेषो को जलाने से यह अमुल्य पदार्थ नष्ट हो जाता है जिसके कारण मृदा उर्वरता व उत्पादकता कम हो जाती है।
2. फसल अवशेषो को जलाने से मृदा का तापमान बढ जाता है जिससे मृदा मे उपस्थित सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते है जो कि मृदा जैव विविधता के लिये गम्भीर चुनौती है।
3. फसल अवशेष जलाने पर भारी मात्रा मे हानिकारक गैसे मिथेन, कार्बनडाई ऑक्साईड, सल्फरडाई ऑक्साईड आदि गैसे छोडी जाती हैपरिणामस्वरूप पृथ्वी का तापमान बढता है जिसके परिणामस्वरूप जलवायु मे विभिन्न परिवर्तन होते है।
4. कृषि अवशेषो को जलाने से निकलने वाली विषैली गैसौ से कैंसर, अस्थमा एवं अन्य श्वास सम्बन्धित रोग हो जाते है।
5. कृषि अवशेषो को जलाने से मृदा का तापमान बढने से मृदा मे उपस्थित मित्र कीट व फफून्द नष्ट हो जाते है जिसके परिणाम स्वरूप कींटो व फफून्द को नियन्त्रित करने के लिये जहरीले कीटनाशको का उपयोग करना पडता है जिससे मृदा भी प्रदूषित होती है तथा साथ ही उत्पादन लागत भी बढ जाती है।
लाभकारी खेती हेतु उचित फसल अवशेष प्रबन्धनः-
1. फसल अवशेष एक प्राकृतिक संसाधन है जिससे उपस्थित कार्बनिक पदार्थ मृदा मे उपस्थित सूक्ष्मजीवों हेतु भोजन का एक प्रमुख स्त्रोत होता है तथा साथ ही मृदा के जैविक, रासायनिक एवं भौतिक गुणो मे भी वृद्धि करते है।
2. पादप द्वारा अवशोषित कुल नाइट्रोजन एवं फास्फोरस का 25 प्रतिशत एवं 75 प्रतिशत पोटाश जड तना एवं पत्तियो में संग्रहित रहते है अतः फसल अवशेष पादप पोषक तत्वो का भंडार है एवं इन्ही फसल अवशेषो को मृदा मे मिला देने से मृदा की उर्वरता शक्ति में भी वृद्धि होगी व फसल लागत में भी कमी आयेगी ।
3. फसल अवशेष भूमी के तापमान को उचित बनाये रखते है गर्मियों में छायांकन प्रभाव के कारण तापमान मे कमी एवं सर्दियो मे तापमान का प्रवाह ऊपर की तरफ कम होता है जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
4. कृषि अवशिष्ठो को मृदा मे मिलाने से खरपतवारो के अंकुरण एवं बढ़वार में कमी आती है जिससे फसलो की उत्पादकता में वृद्धि होती है।
5. कृषि अवशिष्ठ मृदा मे माल्चिंग की तरह कार्य करते है जिससे जल व वायु द्वारा मृदा की होने वाली हानि को रोका जा सकता है तथा साथ ही माल्चिंग से पानी की हानि को भी रोकने का भी कार्य करती है जिसके परिणामस्वरूप कम पानी मे भी अधिक उत्पादन लिया जा सकता है।
अतः किसान भाई कृषि अवशिष्ठो को जलाने के स्थान पर मिट्टी पर मिलाकर खाद बनाऐ जिससे भूमि की उर्वरता शक्ति एवं उत्पादन में भी बढोतरी होगी साथ ही होने वाले पर्यावरण प्रदुषण को भी कम किया जा सकेगा
उल्लेखनीय है कि राजस्थान राज्य अधिसूचना दिनांक 27.08.2015 के द्वारा वायु अवशेष 19 (5) (प्रदुषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत् फसल अवशेष जलाना प्रतिबंधित किया गया है। कृषि आयुक्तालय के आदेश कमांक 3151-3261 दिनांक 19.11.2024 द्वारा फसल अवशेषों को जलाने पर भूमि स्वामित्व के अनुसार रू 5000/- (2 एकड से कम), रू 10000/- (2-5 एकड) और रू 30000/- (5 एकड से अधिक) प्रति घटना जुर्माना लगाने का प्रावधान किया है। उक्त आदेश की अवहेलना किए जाने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 188 एवं अन्य सुसंगत धाराओं के तहत दंडित किया जाएगा